डार्क चॉकलेट का काला चेहरा

Researchers have discovered that some branded dark chocolates contain cadmium and lead (Credit: Pixabay)

एक विशेष रिपोर्ट

February 25, 2023: यदि आप अपने प्यारे बच्चों या प्रिय साथी को डार्क चॉकलेट का उपहार देना पसंद करते हैं तो इस बात की अधिक संभावना है कि आप उन्हें खाने के लिए ज़हर का डिब्बाबंद उपहार दे रहे हैं। यह सुनने में भले ही कड़वा लगे पर अगर आप नियमित रूप से ऐसा कर रहे हैं, तो यह बात बढ़ा-चढ़ा कर नहीं कही गई है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में पता चला कि हमें जो ब्रांडेड डार्क चॉकलेट्स इतनी स्वादिष्ट लगती हैं, हो सकता है कि वे बार-बार सेवन किए जाने पर हमारी सेहत को नुकसान पहुँचा रही हों। असल में, वे लैड (सीसा) और कैडमियम की भारी खुराक से लैस हो सकती हैं

 यूएस स्थित कंज़्यूमर शोध संगठन के वैज्ञानिकों ने पाया कि लोकप्रिय ब्रांड्स द्वारा बनाई जा रही चॉकलेट बार्स में इन दो विषैले भारी धातुओं की मात्रा, अनुमति प्राप्त अधिकतम सीमा से कहीं अधिक है। लैड और कैडमियम दोनों ही इंसानों के लिए बहुत ज़्यादा ज़हरीले हो सकते हैं, भले ही उन्हें कम मात्रा में क्यों न लिया जा रहा हो।

डार्क चॉकलेट में इन दोनों विषैले तत्त्वों की अधिक मात्रा होने से सेहत संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं। अगर बच्चे और गर्भवती स्त्रियाँ इनका अधिक मात्रा में सेवन कर रहे हैं, तो यह उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है। वास्तव में, एक और चिंताजनक तथ्य यह है कि ये दो भारी धातु अन्य कई खाने की वस्तुओं में भी पाए जाते हैं जैसे शकरकंदी, पालक और गाजर। इस प्रकार, मनुष्य के शरीर में कई स्रोतों से इन दो विषैले तत्त्वों के छोटे-छोटे अंश खतरनाक स्तर तक आ सकते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आवश्यक है कि इनकी मात्रा को तत्काल घटाया जाए और इनके नियमित सेवन को कम किया जाए ताकि इनके कारण कोई दीर्घकालीन दुष्प्रभाव न हों।

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यह आँखें खोल देने वाली स्टडी कंज़्यूमर रिपोर्ट (सीआर) की ओर से की गई। यह न्यू यॉर्क के यॉकर्स में स्थित एक स्वतंत्र गैर लाभकारी संस्था है, जो ग्राहकों के साथ सच को जानने के लिए काम करती है और बाज़ार में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए संकल्पबद्ध है। इसने 28 डार्क चॉकलेट बार्स में भारी धातुओं की मात्रा को मापा और यह पाया कि उन सबमें लैड और कैडमियम की चौंका देने वाली मात्रा मौजूद थी।

जिन 23 चॉकलेट बार्स को चुना गया, उनसे यह पता चला कि अगर प्रतिदिन उनके एक आउंस का सेवन किया जाए तो इससे वयस्क, इन दो धातुओं में से किसी एक के लिए ख़तरनाक ज़ोन में आ जाएगा। और 23 बार्स में से, 5 बार में कैडमियम और लैड की मात्रा स्वीकृति सीमाओं से अधिक निकली।

सीआर भोजन सुरक्षा शोधकर्ता टंडे एकिनलेई छानबीन का नेतृत्व कर रहे थे, उनके अनुसार इन दो धातुओं के नियमित संपर्क से बच्चों का आई क्यू कम होता है और उनके मस्तिष्क के विकास में कमी आ सकती है। वयस्क प्रायः लैड के संपर्क में आते हैं, जिसकी छोटी से छोटी मात्रा भी हानिकारक हो सकती है। वे नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर्स, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी और प्रजनन तंत्र को नुकसान जैसे रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं।

हालांकि इस कहानी का उजला पहलू यह है कि 28 में से जिन 5 बार्स की जांच हुई, यह पाया गया कि उनमें लैड और कैडमियम के स्तर बहुत कम थे, जिससे संकेत मिलता है कि चॉकलेट कंपनियाँ सुरक्षित डार्क चॉकलेट तैयार करते हुए अच्छा व्यवसाय कर सकती हैं।

तो प्रश्न यह उठता है कि डार्क चॉकलेट में इन भारी धातुओं को डाला ही क्यों जाता है, और एक निर्माता अपने उत्पादों में लैड और कैडमियम जैसे विषैले और हानिकारक तत्त्वों की मात्रा को कम कैसे कर सकता है? इसे समझने के लिए, पहले यह समझने की चेष्टा करें कि डार्क चॉकलेट ट क्या है या फिर चॉकलेट क्या है?

चॉकलेटों का अस्तित्व पिछले 3,000 वर्षों से चला आ रहा है। इन्हें कोकाओ से बनाया जाता है जो थियोब्रोमा कोकाओ (Theobroma cacao) के  बीजों से मिलता है, ये पेड़ मध्य और दक्षिणी अमेरिका में पाए जाते हैं। ग्रीक शब्द थियोब्रोमा का शाब्दिक अर्थ है, ‘देवताओं का भोजन’।

पहले-पहल चॉकलेट को एक ड्रिंक की तरह तैयार किया गया था। फिर स्पेनिश लोगों ने इसमें गन्ने का रस, शहद और दूसरी मिठास मिला कर इसे मीठा बनाया और पहला हॉट चॉकलेट परोसा। ब्रिटेन का नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम आइरिश फ़िजीशियन बोटेनिस्ट हैंस स्लोन (1660-1753) को इसका श्रेय देता है जो उस समय जमैका में रहते थे। उन्होंने दूध में डार्क चॉकलेट मिला कर उसे पेय पदार्थ में बदल दिया। वे अपने साथ दूध और कोकोओ का मिश्रण लाए और इसके बाद कई साल तक, इसे दवा की तरह बेचा गया।

हालांकि, स्मिथसोनियन पत्रिका का दावा है कि यूरोपियन ने नहीं बल्कि जमैका वालों ने चॉकलेट में सबसे पहले दूध मिलाया था, चॉकलेट को ठोस रूप दिया गया और इसे 19वीं सदी में बाज़ारों में बेचा जाने लगा।

तो इस तरह आरंभिक वर्षों से लोगों द्वारा चॉकलेट और दूध को मिला कर हॉट चॉकलेट पीने तक, चॉकलेट का यही रूप चलन में रहा।

काकाओ के दो प्रमुख तत्त्व हैं जिससे चॉकलेट बनता है – काकाओ सॉलिड और काकाओ बटर। पब्लिक हेल्थ के कैलीफोर्निया विभाग के एक भूतपूर्व अधिकारी टॉक्सिकलॉजिस्ट माइलक डिबार्टोलोमीज़ के अनुसार डार्क चॉकलेट में मिल्क चॉकलेट की तुलना में काकाओ की बहुत अधिक मात्रा होती है जो भार में कम से कम 65 प्रतिशत होती है पर परेशान करने वाली बात यह है कि काकाओ सॉलिड में कैडमियम धातु पाया जाता है और डार्क चॉकलेट में काकाओ की अधिक मात्रा होने की वजह से ही इसमें मिल्क चॉकलेट की तुलना में अधिक भारी धातु पाए जाते हैं।

डिबार्टोलोमीज़ का मानना है कि चॉकलेट से लैड और कैडमियम की मात्रा को हटाना एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि काकाओ में लैड और कैडमियम अलग-अलग तरीकों से जाते हैं। इसका अर्थ है कि वैज्ञानिकों को पता लगाना होगा कि इन दो विषैले धातुओं को निकालने के दो अलग-अलग तरीके कौन से होंगे।

2014 में, कॉर्पोरेट जवाबदेही पर बल देने वाली संस्था एज़ यू सो (एवाईएस) ने एक मिशन चलाया कि हमारी खाई जाने वाली चॉकलेटों में लैड और कैडमियम की ज़हरीली मात्रा का पता लगाया जा सके। एवाईएस ने चॉकलेट उद्योग के साथ आठ साल लंबा मैराथन शोध किया। अंत में, इसने पिछले साल अगस्त में 381 पन्नों की एक रिपोर्ट दी, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया कि इसने चॉकलेट में विषैले लैड की मात्रा को हटाने के लिए सरल, सुरक्षित और किफ़ायती हल खोज लिए हैं।

रिपोर्ट का शीर्षक था, ‘कोकोआ और चॉकलेट उत्पादों से संबंधित विशेषज्ञतापूर्ण छानबीन’। इस रिपोर्ट में बताया गया कि चॉकलेट में लैड और कैडमियम के अंश कैसे आते हैं। ‘चॉकलेट उत्पादों में कैडमियम और लैड की मात्रा को कम करने के लिए 15 हाई कांफिडेंस रणनीतियों का पालन करना होगा।’

तीन चरणों वाली रिपोर्ट ने चॉकलेट में धातुओं के स्रोत को पहचाना और उन्हें कम करने की रणनीतियों पर चर्चा की और धातुओं के स्तर को घटाने से जुड़े विश्लेषण पर अपनी राय दी।

एवाईएस ने छानबीन के बाद बताया कि काकाओ की जड़ें कैडमियम ले कर, उसे फल के अलग-अलग हिस्सों में जमा कर देती हैं। ‘इस प्रभाव को मिटाने के लिए मिट्टी के पीएच पर ध्यान देना चाहिए, पेड़ों को बदल कर लगाना चाहिए, उर्वरकों को धातुओं के संपर्क में नहीं लाना चाहिए और इसके अलावा पानी की गुणवत्ता पर भी ध्यान दें।’ रिपोर्ट में कहा गया।

यह पाया गया है कि काकाओ उत्पादन के दौरान अलग-अलग चरणों में उत्पाद लैड के संपर्क में आता है जो कोकोआ बींस को फलियों से निकालने के साथ ही चालू हो जाता है।

एवाईएस ने निर्यातकों को सलाह दी है कि वे ऐसी जगह से बींस लेना बंद करें जिस जगह बींस में कैडमियम की अधिक मात्रा पाई जाती है और किसानों से कहा गया है कि वे उच्च कैडमियम युक्त खेतों में नए बाग लगाने के बजाए दूसरी जगह देखें और मिट्टी का पीएच बढ़ाने के लिए उपाय करें। उत्पादकों से कहा गया है कि वे बींस की फरमेंटिंग और उन्हें सुखाने के दौरान ध्यान दें कि वे लैड के संपर्क प्रभाव में न आएँ। इसके अलावा बींस को तैयार करने की पद्धति को बदलने की सिफारिश की गई है।

प्रेशर गु्रप के जागरूकता अभियानों के बाद शोधकर्ताओं ने ब्रेनस्ट्रोमिंग रणनीतियों को अपनाया ताकि ग्राहकों के लिए जोखिम से रहित डार्क चॉकलेट का अनुभव दिया जा सके। अब यह देखना बाकी है कि क्या ब्रांडेड चॉकलेटों की भारी बिक्री और मुनाफे से अघाई वैश्विक कंफेक्शनरी इंडस्ट्री, ऐसा कदम उठाना चाहेगी जिससे खाने की चीज़ से विषाक्त धातु निकाले जा सकें।  

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