8 फरवरी, 2023: चुपके से, धीरे-धीरे, निश्चित तौर पर, पिछले कुछ वर्षों के दौरान वॉल स्ट्रीट के शिकारी और उनके वैश्विक साथी एक ऐसा अविश्वसनीय कदम उठाने की योजना बना रहे हैं जिससे सारी कुदरत को बिक्री के लिए बाजार में उतार दिया जाएगा। साम्राज्यवादी ब्लूप्रिन्ट तैयार है। प्रकृति के इस अधिग्रहण के लिए एक नई तरह के कॉर्पोरेशन बनाए गए हैं, एनएसीज़ या नेचुरल एसेट कंपनीज़। इन एनएसीज़ की मदद से, साम्राज्यवादी कोलोनाइज़ करना चाहते हैं, वे सारी दुनिया की जैवविविधता और खेतों के मालिक बनना चाहते हैं, उन्हें नेचुरल एसेट का ब्रांड बना कर वस्तुओं में बदलते हुए, कीमतों के ठप्पे लगाना चाहते हैं। फिर वे उन्हे ताकतवर क्रेताओं को बेच देंगे और ऐसे विशाल पैमाने पर मुद्रीकरण करेंगे जो न कभी किसी ने देखा होगा और न ही कभी कल्पना की होगी।
जो लोग कई पीढ़ियों से उन जगहों पर रहते आए हैं, अब उनके पास उन जगहों के अधिकार नहीं रहेंगे। केवल नए जन्मे एनएसीज़ ही इन खेतों, जंगलों, नदियों, चट्टानों और जलभूमियों के मालिक होंगे।
निजी रूप से संचालित एनएसीज़ न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज (एनवाईएसई) और इंट्रिन्सक एक्चेंज समूह (आईईजी) ने बनाए हैं। भूमि हड़पने की इस परियोजना को रॉकफेलर फाउंडेशन, आईडीबी (इंटर-अमेरिकी डेवलपमेंट बैंक) और एबरडेयर वेंचर्स की ओर से धनराशि दी जाती है।
सीड वारियर और एंटी-इंपीरियलिज़्म नेचुरलिस्ट, डॉ. वंदना शिवा, मुनाफे के लिए सारी प्रकृति के कोमोडिफिकेशन यानी संहिताकरण को ले कर सचेत हैं। ‘यह दुनिया के वित्तीयकरण का अंतिम चरण है … वित्तीय एसेट कंपनियों के नए मॉडल के माध्यम से वित्तीयकरण, जिनका लक्ष्य 4000 ट्रिलियन डॉलर्स है, जिसका अर्थ होगा कि असली संसाधनों और असली संपदा- भूमि, वन, नदियों और जैवविविधता के अधिग्रहण के लिए ऋण संकट का प्रयोग किया जाएगा।’ डॉ. शिवा ने नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एंपायर डायरीज़ को बताया।
डॉ. शिवा कई दशकों से भारत को पेटेंट साम्राज्यवाद से बचाने की कोशिशों में लगी हैं, उन्हें डर है कि एनएसीज़, एक बार सफल रूप से सामने आने के बाद, जैवविविधता और खेतों से निचले स्तर पर जुड़े लाखों लोगों को जड़ से उखाड़ने के लिए स्थानीय सरकार एजेंटों का प्रयोग करेंगी।
‘जिसका अर्थ होगा कि जो लोग इन संसाधनों की देखरेख करते आए हैं, उनके लिए घोर निर्धनता और दरिद्रता। अफसोस की बात है कि ऐसा इसलिए होगा क्योंकि अधिकतर सरकारें कर्ज़ तले दबी हैं (बाहरी दुनिया के साथ वित्तीय रूप से)। अधिकतर सरकारें जिस जगह से भी संभव हो, उधार ले रही हैं। इस तरह वे आसानी से इस जाल में फँसेंगी।’ वे कहती हैं।
‘इसलिए अपनी ज़मीन का प्रभुत्व, हमारे बीजों का प्रभुत्व, हमारे भोजन का प्रभुत्व, हमारे जल का प्रभुत्व बनाए रखना बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। ये प्रजातंत्र और स्वतंत्रता के तंत्रों की तरह नहीं, ये आजीविका कमाने और जीवित बने रहने के लिए हैं।’
वाल स्ट्रीट के साम्राज्यवादियों का एजेंडा उनके इस विचित्र अंदाज़ से ही झलकता है, जिस तरह से न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और इंट्रिन्सक एक्चेंज समूह की वेबसाइटों पर नेचुरल एसेट कंपनियों का विवरण दिया जाता है।
न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज अपनी वेबसाइट पर लिखता है: ‘एक एनएसी एक रूपांतरणकारी समाधान है, जहाँ प्राकृतिक इकोसिस्टम, न केवल संभावित संसाधन हैं जिन्हें सामने लाना है बल्कि एक निवेश योग्य उत्पादक संपत्ति भी हैं, जो पर्यावरणीय संसाधनों के उत्तरदायी प्रबंधकों को वित्तीय पूंजी भी प्रदान करते हैं। एक सार्वजनिक रूप से ट्रेडिड इक्विटी के रूप में, एनएसीज़ निवेशकों को इस योग्य बनाएँगे कि वे पूंजी के उचित वितरण के साथ सतत क्षमता बनाए रखने के उद्देश्यों को पूरा कर सकें …।
प्राकृतिक संपदा को वित्तीय पूंजी में बदलने के लिए, आईईजी ने एक एकाउंटिंग ढांचा तैयार किया है ताकि पर्यावरणीय प्रदर्शन को मापा जा सके। प्राकृतिक संपदा ने वैश्विक ईकोसिस्टम सेवाओं में वार्षिक रूप से 125 ट्रिलियन डॉलर की अनुमानित धनराशि उत्पन्न की जैसे कार्बन सीक्वेसट्रेशन, बायोडाइवरसिटी और क्लीन वाटर।
यहाँ एनएसीज़ को मीठे शब्दों में परिभाषित किया गया है, न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट हमें उस साम्राज्यवादी एजेंडा का संकेत भी देती है जिसे प्रकृति से मुनाफा कमाने के लिए बनाया गया है। इन शब्दों पर ध्यान दें, ‘निवेशयोग्य उत्पादक संपत्ति’, ‘सार्वजनिक रूप से ट्रेडिड इक्विटी’, ‘पूंजी के वितरण के निवेशक’, ‘एकाउंटिंग ढांचा’, ‘पर्यावरणीय प्रदर्शन की माप और प्राकृतिक संपत्तियाँ’।
न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट हमें यह भी बताती है कि साम्राज्यवादी धावे में किसे निशाना बनाया जा रहा है: ‘एनएनसी के ढांचे से जो प्राकृतिक संपदा लाभ उठा सकती हैं, उनमें प्राकृतिक लैंडस्केप जैसे जंगल, आर्द्र भूमि, कोरल रीफ और खेत आदि शामिल हैं।’
डॉ. शिवा नेचुरल एसेट कंपनियों की ओर भूमि हड़पने के तरीके पर रोशनी डालती हैं, ‘वैश्विक रूप से गुंथी हुई दुनिया में, उन्हें (नए साम्राज्यवादी) स्थानीय कंपनियों की आवश्यकता नहीं है। उनके पास सर्विस देने वाले एजेंट रहेंगे। जैसे मौजूदा वित्तीय दुनिया में भारत के लगभग सभी होनहार मस्तिष्क शामिल हैं। वे बैंकों और निवेश कंपनियों के लिए काम कर रहे हैं।’ वे कहती हैं।
‘तो वे क्या करेंगे, वे सरकारी तंत्रों, नए संरचनात्मक अनुकूलन प्रोग्रामों और नई क्लाइमेट कंडीशनेल्टिीज़ के माध्यम से इस नई गुलामी के पंजे फैलाएँगे।’ एक्टिविस्ट, फायरब्रांड वक्ता और इकोफेमनिस्ट, जो दुनिया भर की औरतों को प्रेरित करती हैं कि वे फार्मलैंड इंपीयरलिज़्म से बचें; उन्हें डर है कि एनएसीज़ क्लाइमेट या जलवायु संकट को हाईजैक कर उसका गलत इस्तेमाल करेंगी और अपने छिपे हुए एजेंडा को पूरा करेंगी।
‘जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मुद्दा है जिसके लिए मैंने अपने जीवन का लंबा समय दिया है और मैंने अपनी क़िताब सॉयल नॉट ऑयल में भी इसके बारे में लिखा है। बड़े अफसोस से कहना पड़ता है कि जलवायु परिवर्तन ही वह साधन और माध्यम होगा जिससे ज़मीन, जैवविविधता आर जल का वित्तीयकरण होगा।’ डॉ. शिवा ने कहा। उन्होंने इस चलन को भी रेखांकित किया कि साम्राज्य भूमि को अपने बस में करने के लिए संकट का लाभ उठा रहे हैं।
इस तरह यह एक निष्ठुर साम्राज्यवादी योजना है ताकि जलवायु से जुड़े आपातकाल का प्रयोग करते हुए एनएसीज़ को लान्च कर सकें?
‘खैर, ऐसी तो किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। यह सब पिछले साल ही सामने आया। बिल गेट्स ने अपनी एक क़िताब हाउ टू अवॉयड ए क्लाइमेट डिजाज़टर में सब कुछ स्पष्ट रूप से लिखा है – जैसे नेट ज़ीरो।’ उन्होंने पिछले साल में क्लाइमेट एक्शन से जुड़ी चिंताओं की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा।
डॉ. शिवा नेट ज़ीरो की अवधारणा को बकवास बताते हुए कहती हैं कि यह सब दिखावटीपन है क्योंकि यह असल में सीओ2 एमीशन को रोकने की हिमायत नहीं करता। ‘नेट ज़ीरो का सादा सा अर्थ यही है कि कार्बन सीक्वेस्टरिंग, कार्बन सिंक्स और कार्बन ऑफसेटिंग के लिए किसी दूसरे की ज़मीन का इस्तेमाल करना।’ उन्होंने बताया।
नेट ज़ीरो नियम को लागू करते हुए, विशाल कार्बन फुटप्रिंट रखने वाले प्रमुख कॉर्पोरेशन, ‘एक प्राइमरी जंगल को नष्ट करके कहीं और किसी छोटे से पार्क में ऑफसेट करके बदल सकते हैं। पिछले साल ऑफसेट करने का यह विचार तेज़ी से सामने आया पर यह पूरी तरह से साफ है कि इस तरह की बड़ी योजनाएँ एक साल में पैदा नहीं होतीं, इन्हें केवल पिछले साल में प्रकट किया गया था।’
डॉ. शिवा को डर है कि निरंतर चल रहे वैश्विक भोजन संकट के आसपास चल रहे चैंकाने वाले नैरेटिव के पीछे कोई छिपा हुआ एजेंडा काम कर रहा है। लोकप्रिय पेड मीडिया आउटलेट लगातार दुनिया को बता रहे हैं पूर्वी यूक्रेन पर रूसी हमले की वजह से ही दुनिया भर में भोजन का संकट पैदा हो रहा है।
परंतु नवदानया इंटरनेशनल ने हाल ही में एक सख़्त रिपोर्ट पेश की, जिसमें संकट के उन मूल कारणों को बताया गया, जो किसी से कहे नहीं गए, ‘मौजूदा भोजन संकट से जुड़े कारणों की जांच करने वालों ने इस चीज़ को उपेक्षित कर दिया है कि समस्या की जड़ वितरण के अभाव या मार्केट इंटीग्रेशन में कमी नहीं बल्कि इस बात में है कि फूड सिस्टम किस तरह पावर के आसपास बुना गया है।’ रिपोर्ट में कहा गया है।
‘प्रमुख एजेंडा यही है कि भोजन को अपने नियंत्रण में लेते हुए, असली भोजन के बजाए नकली और प्रयोगशाला में तैयार भोजन दिया जा सके।’ डॉ. शिवा चेतावनी देती हैं। ‘उनका नारा है – किसानों के बिना खेती और खेतों के बिना भोजन।’
वे भोजन वितरण संकट के मौजूदा नैरेटिव की तुलना उन नैरेटिव्स से करती हैं जिन्हें 1960 के दशक में बनाया गया था, जब साम्राज्यवादियों ने भारत में तथाकथित ‘ग्रीन रेवोल्यूशन’ को लागू किया था।
‘द ग्रीन रेवोल्यूशन, अकाल के एक वर्ष के दौरान लागू किया गया, पर वह ऐसे अकाल वर्ष में लागू हुआ जब भूख से कोई नहीं मरा था। मैं तब इतनी बड़ी थी इसलिए इसे जानती हूँ। गेहूँ के दाम बढ़े थे पर भारत में कोई अकाल नहीं पड़ा था। इस नैरेटिव के साथ भारत में केमिकल (खेती-बाड़ी से जुड़े कामों में) लाने के लिए ग्रीन रेवोल्यूशन लाया गया।’ वे कहती हैं।
भूख का नैरेटिव – पिछले साल की तुलना में भूख के आंकड़े बढ़े हैं – यह वैश्विक भूख के असली कारणों को छिपा रहा है, उन्हें लगता है। ‘आज अफ्रीका जैसा प्रचुर देश भूखा क्यों है? पहला, उन्होंने निर्यात पर आश्रित कर दिया गया।
दूसरे, उन्हें उनका भोजन उगाने और भोजन को अपने अधीन रखने से दूर रखा गया … यह अभाव, पिछले अन्याय की देन है। और नया अभाव, इस नए अन्याय की देन है कि वित्तीय जगत फूड के क्षेत्र में कदम रख रहा है।’
तो, अवसरवादी वैश्विक समुदायों ने कब निश्चित रूप से प्रकृति और भोजन को अपने अधीन करने की साजिश रची? ‘उन्होंने 2008 में वाल स्ट्रीट के पतन के साथ इसे आरंभ किया। तभी वित्तीय जगत ने कहा, ‘इमारतें सुरक्षित नहीं रहीं। पर हर किसी को ज़मीन और भोजन की आवश्यकता होगी। और अगर हम इस व्यवसाय में आते हैं तो हम कभी घाटा नहीं उठाएँगे।’ वे कहती हैं।
डॉ. शिवा ने उस कॉर्पोरेट एजेंडा के खि़लाफ़ अनेक क़िताबें लिखी हैं जो एग्रीकल्चर को एग्रीबिजनेस में बदलना चाहता है, उनका मानना है कि वित्तीय हित रखने वाले समूहों का आना फूड इंडस्ट्री के लिए बहुत बुरा होगा।
‘वित्तीय कंपनियाँ फूड बिज़नेस में कदम रख चुकी हैं। इस साल वित्तीयकरण और वित्तीय सट्टे की वजह से भोजन के दामों में 87 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।’ उन्होंने कहा। ‘तो, अगर हम नेचुरल एसेट कंपनियों की 4000 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी को देखें तो देख सकते हैं उन्होंने केमीकल्स, बायोटैक्नोलॉजी, सूचना टैक्नोलॉजी और वित्तीय संसार को एक साथ प्रस्तुत कर दिया है जिसे वे फिनटैक का नाम देते हैं।’
वे तथाकथित प्रगतिशील शब्द ‘टैक’ के इस शातिराना प्रयोग को औपनिवेशिक अधिग्रहण का साधन मानती हैं, डॉ. शिवा ने कहा, ‘एग-टैक, फिन-टैक, बायो-टैक – इन सभी शब्दों के साथ ‘टैक’ शब्द का प्रयोग, फूड सिस्टम का विशाल टेकओवर ही है।’
REPUBLISHING TERMS:
All rights to this content are reserved. If you want to republish this content in any form, in part or in full, please contact us at writetoempirediaries@gmail.com.
7 Comments