
दुनिया कोविड-19 की महामारी के चौथे साल में कदम रख रही है, आंकड़े दिखाते हैं कि कोविड ने 2022 में जितने लोगों की जानें लीं, भूख की वजह से उससे दस गुना ज़्यादा लोग मरे। Worldometers.info वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में कोविड की वजह से 1.2 मिलियन लोग मारे गए, जबकि भूख की वजह से दुनिया भर में 11.12 मिलियन लोगों की जानें गईं। 2020 में भी ऐसे ही आंकड़े थे, उन गर्मियों में भूख की वजह से जो लोग मारे गए, कोविड की वजह से मरे लोगों की तुलना में उनकी संख्या 12 गुना ज़्यादा थी।
वर्ल्डोमीटर्स, अपने आंकड़े यूएन एजेंसियों जैसे वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइज़ेशन (डब्लयूएचओ) से लेता है, दिसंबर के आखिरी सप्ताह में भी 2022 में हुई मौतों के लिए अनेक कारण सूचित किए गए, जिनसे पता चला कि वायरल संक्रमण की बजाए अन्य कारणों से होने वाली मौतों की संख्या कहीं अधिक थी।
मिसाल के लिए, 8.17 मिलियन लोगों से अधिक (कोविड से साढे़ सात गुना अधिक), लोग तरह-तरह के कैंसर के कारण मारे गए। 4.97 मिलियन लोगों से अधिक (कोविड से चार गुना अधिक), धूम्रपान संबंधी रोगों और मामलों में मारे गए, 2.49 मिलियन लोग अधिक मात्रा में शराब पीने की वजह से मारे गए और 1.34 मिलियन लोगों के लिए सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाएँ जानलेवा साबित हुईं।
5 साल से कम आयु के बच्चों में भी कुछ ऐसा ही चलन देखने में आया। उनमें से 7.56 मिलियन बच्चे विविध कारणों से मारे गए (यह आंकड़ा कोविड के कारण होने वाली मौतों के आंकड़े से छह गुना अधिक था)। यहाँ तक कि 2022 में होने वाली आत्महत्याओं का आंकड़ा भी 1.07 मिलियन के साथ, कोरोनावायरस से होने वाली मौतों के आंकड़े के निकट ही था।
हालांकि मुख्यधारा मीडिया आउटलेट शहर में अपनी सुर्खियों और प्राइम टाइम ऑन-एयर शोज़ के माध्यम से महामारी की ख़बर चीख-चीख कर देते रहे, पर इंसानी मौतों के दूसरे कारणों को दिखाने के लिए थोड़ी सी जगह भी नहीं रखी गई जो कुल मिला कर, कोविड से होने वाली मौतों से बीस गुना ज्यादा थी। असल में, पिछले साल जैसी ख़बरें दी गईं, उन्होंने एक ऐसी झूठी मान्यता को जन्म दिया कि पिछले 12 महीनों के दौरान कोविड ही मौतों की इकलौती वजह रहा।
भोजन का संकट
मिसाल के लिए भोजन संकट को ही लें – या फिर भोजन के अभाव को लें, जिसने दुनिया के अनेक हिस्सों को अपनी चपेट में लिया, जिसके कारण कुपोषण और भूख से भारी संख्या में मौतें हुईं, इसने कोविड से होने वाली मौतों के आंकड़े को भी पीछे छोड़ दिया। और 2022 में ही ऐसा नहीं हुआ था। गैर सरकारी संगठन ऑक्सफेम की जुलाई 2021 में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में प्रति मिनट 11 लोग भूख की वजह से दम तोड़ देते हैं, जबकि कोविड की वजह से प्रति मिनट होने वाली मौतों की संख्या 7 थी।
रिपोर्ट का शीर्षक था, ‘द हंगर वायरस मल्टीप्लाइज़’, इसमें हंगर हॉटस्पॉट के रूप में कई देशों के नाम लिए गए थे जिनमें अफगानिस्तान, इथोपिया, दक्षिणी सूडान, सीरिया और यमन शामिल थे – ये सभी खूनी संघर्षों में शामिल हैं।
यह सच है कि दुनिया भर के आम लोगों के जीवन तहस-नहस हुए हैं और ऐसा ख़ासतौर पर विकासशील देशों में देखा जा सकता है, सरकार की ओर से लॉकडाउन्स जैसे प्रशासनिक कदम उठाए गए क्योंकि वे इसे वायरस को रोकने का नुस्खा मान रहे थे, इसकी वजह से भारी संख्या में लोगों की नौकरियाँ गईं, मैन-डेज़ में कमी आई और करोड़ों की संख्या में छोटे और बड़े व्यवसाय बंद हो गए। इनकी वजह से दुनिया भर में निर्धनता और भूख ने और तेज़ी से पैर पसारे।
मीडिया का लगाव
हालांकि, मीडिया का लगाव शायद कोविड से होने वाली मौतों के आंकड़ों, खाली सड़कों, सड़कों पर वाहनों के न होने के कारण साफ होने वाले पर्यावरण और लॉकडाउन के दौरान सिने सितारों और राजनीतिक नेताओं के रोजमर्रा के जीवन को दिखाने के प्रति अधिक रहा।
मीडिया की इसी सनक की वजह से, प्रशासकों ने दूसरे जानलेवा रोगों को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया, जिन पर महामारी से पहले वाले वर्षों में, वैश्विक रूप से बहुत प्रगति हुई थी।
मिसाल के लिए टी.बी. या तपेदिक को ही लें। अक्टूबर 2021, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नतीजा निकाला कि कोविड-19 की महामारी ने, तपेदिक से मुकाबला करने की वैश्विक प्रगति को कई वर्ष पीछे धकेल दिया है और ऐसा पिछले दशक के दौरान पहली बार हुआ है, तपेदिक से होने वाली मौतों में बढ़ोतरी पाई गई।
‘2020 में, 2019 की तुलना में तपेदिक से मरने वालों की संख्या बढ़ी, बहुत कम लोगों के रोग का निदान हुआ और बहुत कम रोगियों को चिकित्सा प्रदान की गई और कुल मिला कर तपेदिक की अनिवार्य सेवाओं में कमी आई। कई देशों में, कोविड-19 की प्रतिक्रिया में अनिवार्य मानवीय, वित्तीय और अन्य संसाधनों तथा तपेदिक सेवाओं की उपलब्धता को कम कर दिया गया।’ विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में कहा गया।
इसकी एक और मिसाल, बच्चों की वैक्सीनेशन दर में कमी आई। जुलाई 2021, यूनीसेफ और डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट किया कि 2020 में, 23 मिलियन बच्चे रूटीन वैक्सीनेशन सेवाओं के माध्यम से बुनियादी वैक्सीन सेवा पाने से रह गए- यह दर 2017 से 3.7 मिलियन अधिक थी।
‘यह चिंता का विषय है- इनमें से अधिकतर, 17 मिलियन बच्चों को – पूरे साल के दौरान एक भी वैक्सीन नहीं मिली, जिसने वैक्सीन तक पहुँच बनाने की असमानता को और भी गहरा कर दिया। इनमें से अधिकतर बच्चे ऐेसे समुदायों से थे, जो संघर्ष से प्रभावित थे। वे सुदूर स्थानों पर थे जिस जगह सेवाएँ बहुत कम थीं या फिर वे अनौपचारिक रूप से झोंपड़पट्टी इलाके में रह रहे थे, जहाँ उन्हें कई तरह के अभावों का सामना करना पड़ता था जैसे बुनियादी स्वास्थ्य और प्रमुख सामाजिक सेवाओं तक सीमित पहुँच।’ दो एजेंसियों ने इस बात को माना।
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